नागपुर में बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने विजयादशमी मनाई। शस्त्र पूजा के दौरान पहली बार महिला मुख्य अतिथि संतोष यादव मौजूद थीं। संतोष दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला हैं।
संघ के दशहरा समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस, सरसंघचालक डा. मोहन भागवत मौजूद थे। मोहन भागवत ने अपनी स्पीच में एक बार फिर जनसंख्या नियंत्रण, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा नीति जैसे मुद्दों का जिक्र किया। कहा- जनसंख्या नियंत्रण और धर्म आधारित जनसंख्या असंतुलन ऐसे मुद्दे हैं, जिसे लंबे समय तक नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
भागवत ने महिला मुख्य अथिति की मौजूदगी में एक घंटे तक स्पीच दी। कहा- जो सारे काम पुरुष करते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं। लेकिन जो काम महिलाएं कर सकती हैं, वो सभी काम पुरुष नहीं कर सकते। महिलाओं को बराबरी का अधिकार, काम करने की आजादी और फैसलों में भागीदारी देना जरूरी है।
भागवत के भाषण में मातृ शक्ति, जनसंख्या पॉलिसी जैसे 5 मुद्दों का जिक्र... पढ़िए पूरा भाषण
1. महिला सशक्तिकरण
"यह जरूरी है कि महिलाओं को सभी क्षेत्रों में बराबरी का अधिकार और काम करने की आजादी दी जाए। हम इस बदलाव को अपने परिवार से ही शुरू कर रहे हैं। हम अपने संगठन के जरिए समाज में ले जाएंगे। जब तक महिलाओं की बराबरी की भागीदारी निश्चित नहीं की जाएगी, तब तक देश की जिस तरक्की को हासिल करने की हम कोशिशें कर रहे हैं, उसे हासिल नहीं किया जा सकता।
संघ ने पर्वतारोही संतोष यादव को अपने कार्यक्रम में चीफ गेस्ट बनाया है। कुछ हासिल करने वाली महिलाओं की उपस्थिति सुशिक्षित समाज का हिस्सा रहा है और डॉक्टर हेडगेवार के समय से ही यह संघ के कामों में प्रेरणा का जरिया रहा है। तब अनुसियाबाई काले हमारे कार्यक्रम में मौजूद रही थीं। तब की इंडियन वुमंस कॉन्फ्रेंस की चीफ राजकुमारी अमृत कौर भी हमारे शिविर का हिस्सा बनी थीं। दिसंबर 1934 में भी चीफ गेस्ट महिला थीं और यह तब से ही चला आ रहा है। इमरजेंसी के बाद अकोला में हुए संघ के कार्यक्रम में भी महिला चीफ गेस्ट थीं। उस विजयादशमी कार्यक्रम में औरंगाबाद की कुमुदताई रांगेनकर मुख्य अतिथि थीं।"
2. संघ में महिलाओं की भूमिका
"समाज महिला और पुरुष दोनों से बनता है। हम इस पर बहस नहीं कर रहे कि बेहतर कौन है, क्योंकि हम जानते हैं कि इन दोनों में से एक भी मौजूद न हो तो कोई समाज अस्तित्व में नहीं आ सकता है। कुछ भी सृजित नहीं किया जा सकता है। ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं और यही भारतीय फलसफा है। राष्ट्र निर्माण का काम अलग-अलग संस्थाएं महिलाओं और पुरुषों के लिए कर सकती हैं, लेकिन संघ द्वारा किए गए हर सामाजिक कार्य में महिलाएं और पुरुष मिलकर ही काम करते हैं। डॉक्टर साहब के समय चरित्र निर्माण को ध्यान में रखते हुए दो अलग यूनिट्स बनाए गए थे। लेकिन, हर काम में महिलाएं और पुरुष एकसाथ मिलकर काम करते आ रहे हैं।"
3. समाज और मातृशक्ति
"अगर किसी समाज को व्यवस्थित रहना है तो महिला और उसकी मातृ शक्ति को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। हमें उन्हें मजबूत करने की आवश्यकता है। हम उन्हें मां कहते हैं, हम उन्हें जगत जननी मानते हैं। जब हम ऐसी चीजें मानते हैं तो यह समझ नहीं आता कि ऐसा क्या डर है जो हम उनकी गतिविधियों को सीमित कर देते हैं। और, बाद में जब विदेशी आक्रांता आते हैं तो ये सारी बाध्यताएं वैध हो जाती हैं। आक्रमणकारी चले जाते हैं, लेकिन हम ये प्रतिबंध चलाते रहते हैं। हमने महिलाओं को कभी आजाद नहीं किया।
हम उन्हें जगत का निर्माण करने वाली मानते हैं, ये अच्छी बात है। लेकिन इसके चलते हमें उन्हें प्रार्थना गृह में ही कैद रखना होगा, यह अच्छा नहीं है। हम उन्हें पूजा घरों में बांधे रखते हैं या फिर घरों बंद रखकर उन्हें सेकेंड क्लास बताते रहें। इससे अलग हटकर हमें उन्हें घर और समाज में बराबरी का अधिकार देना होगा और फैसले लेने में आजादी देनी होगी।
2017 में हमारी महिला कार्यकर्ताओं ने देश में मातृ शक्ति पर एक सर्वे किया। इसमें सभी वर्गों की महिलाओं को शामिल किया गया था। इस सर्वे की शुरुआत निर्मला सीतारमण ने की थी। इस सर्वे का नतीजा निकला था कि जो कुछ भी पुरुष कर सकते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं। लेकिन जो सारी चीजें महिलाएं कर सकती हैं, वह सब पुरुष नहीं कर सकते हैं। तो जरूरत है हर क्षेत्र में महिलाओं को काम की आजादी और बराबरी का अधिकार देने की।"
4. जनसंख्या और धर्म आधारित असंतुलन
"एक व्यापक जनसंख्या नियंत्रण नीति की जरूरत है। जो सभी पर बराबरी से लागू होती हो। राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या असंतुलन पर हमें नजर रखनी होगी। जब सभी पर बराबरी से एक नीति लागू होगी तो किसी को भी रियायतें नहीं मिलेंगी। कुछ साल पहले फर्टिलिटी रेट 2.1 था। दुनिया की आशंकाओं से उलट हमने बेहतर किया और इसे 2 तक लेकर आए। लेकिन और नीचे आना खतरनाक हो सकता है। बच्चे समाज का व्यवहार अपने परिवार में सीखते हैं। इसके लिए आपको अपने परिवार में संख्या की जरूरत होती है। आपको अपनी बराबरी की उम्र वाले लोग चाहिए, आपको ऐसे लोग चाहिए जो आपसे उम्र में बड़े हों.. ऐसे भी चाहिए जो आपसे उम्र में छोटे हो। जब जनसंख्या बढ़नी बंद हो जाती है तो समाज और भाषाएं गायब हो जाती हैं।
जनसंख्या में असमानता भौगोलिक सीमाओं में बदलाव लाती है। जनसंख्या नियंत्रण और धर्म आधारित जनसंख्या संतुलन ऐसे अहम मुद्दे हैं, जिन्हें लंबे समय तक नजंरदाज नहीं किया जा सकता है। एक संपूर्ण जनसंख्या पॉलिसी लाई जानी चाहिए और ये सभी पर बराबरी से लागू हो। धर्म आधारित असंतुलन और जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन देश को तोड़ देते हैं। ईस्ट टिमोर, कोसोवो और साउथ सूडान जैसे नए देश धार्मिक आधार पर हुए असंतुलन का उदाहरण हैं।"
5. मातृ भाषा और नई शिक्षा नीति
"हम हमेशा रोना रोते रहते हैं कि हमारी मातृभाषा के साथ अन्याय हो रहा है। अब नई शिक्षा पॉलिसी में ऐसी मातृभाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। लेकिन क्या हम अपने बच्चों को ऐसे संस्थानों में पढ़ने के लिए भेज रहे हैं जो मातृ भाषा में शिक्षा मुहैया कराता है? एक मिथक है कि अच्छा करियर के लिए इंग्लिश एजुकेशन जरूरी है। यह सत्य नहीं है। अगर हम देश के बड़े लोगों को देखें तो करीब 80 फीसदी ऐसे हैं, जिन्होंने ऐसे संस्थानों से मैट्रिक तक पढ़ाई की है, जो उनकी मातृभाषा में शिक्षा मुहैया कराते हैं। इस फैक्ट और नई शिक्षा नीति के बावजूद अगर हम अपने बच्चों को मातृ भाषा में शिक्षा देने वाले संस्थानों में नहीं भेजेंगे तो क्या ये पॉलिसी कभी सफल होगी?
जब तक अभिभावक बच्चों को यह बताते रहेंगे कि उनकी जिंदगी का मकसद पढ़ना और अच्छा पैसा कमाना है, भले उन्हें यह पसंद हो या नहीं.. तब तक हमें देश में संस्कारवान और जिम्मेदार नागरिक नहीं मिलेंगे। वह केवल पैसा बनाने वाली मशीनें रहेंगे।"
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