मैं मुमताज खान भारत की फॉरवर्ड हॉकी खिलाड़ी हूं। अभी मुझे अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ ने ‘राइजिंग स्टार ऑफ द ईयर’ से नवाजा है।
स्कूल से आने के बाद पापा की सब्जी की दुकान पर 3 से 4 घंटे बैठती
परेशानियां तो जिंदगी का हिस्सा हैं, प्रॉब्लम आना भी जरूरी है, क्योंकि जितना बड़ा संघर्ष उतना बड़ा मुकाम। परिवार में हम 6 बहनें और एक छोटा भाई है। बचपन से पापा को सब्जी का ठेला लगाते देख रही हूं। वो सुबह 4 बजे उठकर मंडी जाकर सब्जी लाते और मम्मी इस काम में उनकी हेल्प करती हैं। मेहनत करते-करते उन्हें रात के 10 बज जाते हैं।
यह सब देखकर मुझे बहुत दुख होता था। मैं सोचती काश मेरा कोई बड़ा भाई होता जो पापा की इस काम में मदद करता।
मैं उस समय चौथी क्लास में थी। स्कूल से आती तो मम्मी को घर और दुकान दोनों की जिम्मेदारी निभाते देखती थी, क्योंकि वो इतनी मेहनत सिर्फ हमारा पेट पालने के लिए करती थीं। मम्मी की मदद करने के लिए स्कूल से आने के बाद 3 से 4 घंटे दुकान पर बैठने लगी। पापा पहले साइकिल रिक्शा चलाते थे, लेकिन कम आमदनी के चलते सब्जी की रेहड़ी लगाने लगे।
मुझे हॉकी किट मेरे कोच ने दिलाई
क्लास 6 में मेरे स्कूल के ही लड़के-लड़कियां हॉकी खेलते थे। वहां के कोच ने मुझे बोला तुम हॉकी खेला करो तुम्हारी स्पीड अच्छी है, लेकिन मैंने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि मैं नहीं खेल सकती, मम्मी-पापा मना करते हैं। इसमें चोट लगने का खतरा रहता है, फेस खराब हो सकता है।
ये टाल-मटोल लंबे वक़्त तक चलती रही। स्कूल में इंटरवल के दौरान मेरे सारे दोस्त हॉकी खेलते और मैं बस उन्हें बैठकर देखती रहती थी। दोस्तों को रोज-रोज खेलता देख मेरी दिलचस्पी धीरे-धीरे बढ़ने लगी।
मैंने सोचा चलो ट्राई किया जाए। जब खेला तो अच्छा लगा। मैंने अपने स्कूल से थोड़ी-थोड़ी बारीकियां सीखीं और किसी की सलाह पर एक दिन पापा के साथ हजरतगंज ‘केडी सिंह बाबू स्टेडियम’ पहुंच गई। पापा की इतनी कमाई नहीं हो पाती है कि घर का खर्च चलाने के साथ ही स्कूल फीस और हॉकी किट ली जा सके। इसलिए मुझे हॉकी किट मेरे कोच ने दिलाई।
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