पुतिन के दांव से बदलेगी भारत की तस्वीर
मास्को: अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के साथ चल रहे तनाव के बीच रूस और ईरान ने एक मास्टरस्ट्रोक चल दिया है। इन दोनों देशों ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की काट के लिए 25 अरब डॉलर की लागत से 3000 किमी लंबे रास्ते का खाका तैयार किया है। यह रास्ता रूस के व्यवसायिक केंद्र सेंट पीटर्सबर्ग को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को जोड़ेगा। यह जमीनी और समुद्री
रास्ता सेंट पीटर्सबर्ग से मास्को, वोलगोग्रैड, अस्त्रखान से कैस्पियन सी के रास्ते ईरान पहुंचेगा। इसके बाद ईरान की राजधानी तेहरान और भारत के बनाए चाबहार पोर्ट से होते हुए सामान मुंबई बंदरगाह तक पहुंचेगा।
इस रास्ते के नहीं होने पर अब तक भारत का सफर तय करने के लिए रूसी सामानों को 14 हजार किमी का सफर तय करना होता था और 40 दिन का समय लगता था। यह पूरा प्रॉजेक्ट रूस और ईरान के लिए बेहद अहम है जो पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की मार झेल रहे हैं। यही वजह है कि ईरान भी चाबहार पोर्ट से लेकर तेहरान तक अपने रेल मार्ग का विस्तार कर रहा है। वहीं रूस चर्चित वोल्गा नदी को अजोव के समुद्र से जोड़ने के लिए 1 अरब डॉलर खर्च कर रहा है। इसके लिए नहरों को चौड़ा किया जा रहा है जिससे अब सालभर मालवाहक जहाज आ जा सकेंगे।
उधर, भारत ईरान में चाबहार पोर्ट के लिए अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक इस अरबों डॉलर के निवेश के बीच कुछ रूसी और ईरानी जहाज अभी ही इस रास्ते का इस्तेमाल करने लगे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि किस तरह से अलग-अलग ब्लॉक के महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा से तेजी से व्यापारिक नेटवर्क अलग आकार ले रहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए रूस और ईरान मिलकर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। इस पूरे रास्ते को बनाने का मकसद पश्चिमी हस्तक्षेप से व्यवसायिक संपर्कों की सुरक्षा करना है।
रूस और ईरान एक-दूसरे की मदद कर रहे
उधर, भारत ईरान में चाबहार पोर्ट के लिए अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक इस अरबों डॉलर के निवेश के बीच कुछ रूसी और ईरानी जहाज अभी ही इस रास्ते का इस्तेमाल करने लगे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि किस तरह से अलग-अलग ब्लॉक के महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा से तेजी से व्यापारिक नेटवर्क अलग आकार ले रहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए रूस और ईरान मिलकर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। इस पूरे रास्ते को बनाने का मकसद पश्चिमी हस्तक्षेप से व्यवसायिक संपर्कों की सुरक्षा करना है।
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