अमेरिका के स्कूलों में पढ़ने वाले हजारों बच्चों को उनकी मर्जी के बिना मिलिट्री करियर की तरफ धकेला जा रहा है। द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट ने इसका खुलासा किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि देशभर में कई पब्लिक स्कूल ऐसे हैं जो उनके यहां पढ़ने वाले बच्चों को जबरदस्ती अमेरिका की मिलिट्री के जूनियर रिजर्व ऑफिसर ट्रेनिंग कॉर्प्स यानी JROTC में भर्ती करा रहे हैं।
अमेरिका के डेट्रायट शहर में परशिंग हाई स्कूल में पढ़ रही एंड्रेया थोमस ने द न्यूयॉर्क टाइम्स को इसकी जानकारी दी है। उसने कहा, स्कूल के पहले दिन जब मैंने अपने स्कूल का शेड्यूल देखा तो पता चला कि मेरी मर्जी के बिना ही मेरा नाम JROTC की क्लास के लिए दर्ज कर लिया गया है। मैंने स्कूल के प्रशासन को कई बार मेरा काटने के लिए कहा लेकिन उसके बाद भी ऐसा नहीं किया गया। एंड्रेया की तरह ही कई बच्चों और उनके मां-बार ने टाइम्स से बातचीत में इस कोर्स को लेकर अपनी पेरशानी बताई है।
एंड्रेया ने JROTC में जबरन नाम दाखिल किए जाने का विरोध किया, लेकिन उस विरोध का स्कूल के प्रशासन पर कोई असर नहीं पड़ा।
पहले जाने क्या है JROTC प्रोग्राम
दरअसल अमेरिका में JROTC प्रोग्राम को US मिलिट्री फंड करती है। इसमें बच्चों को मिलिट्री ज्वाइन करने के लिए तैयार किया जाता है। दाखिला लेने वाले सभी बच्चों को लीडरशिप, कई तरह के स्किल, अनुशासन सीखने के लिए कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इस प्रोग्राम की ट्रेनिंग मिलिट्री से रिटायर हुए सैनिक देते हैं। अमेरिका के लगभग 3500 स्कूलों में इसके सेंटर हैं। माना जाता है कि इस ट्रेनिंग से गुजरने के बाद ज्यादातर बच्चे मिलिट्री को करियर बनाने की ओर बढ़ते हैं।
प्रोग्राम में शामिल किए गए ज्यादातर बच्चे अश्वेत
टाइम्स ने JROTC प्रोग्राम की सच्चाई को बाहर लाने के लिए 200 से ज्यादा रिकॉर्डस चेक किए। इसमें सामने आया कि दर्जनों स्कूलों में इस प्रोग्राम को अनिवार्य किया हुआ है। यानी स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों को इस ट्रेनिंग से गुजरना ही होगा। रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ कि इस ट्रेनिंग में भर्ती होने वाले ज्यादातर बच्चे अश्वेत हैं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के परिवारों से आते हैं।
हुलिओ मेजा ने टाइम्स को बताय कि पहले उनकी बेटी ने प्रोग्राम में दाखिल किए जाने का विरोध किया था, लेकिन उस परमिशन नहीं मिली की वो उसे छोड़ सके। बाद में उनकी बेटी JROTC को पसंद करने लगी।
वियतनाम युद्ध में सैनिकों की भर्ती में की मदद
टाइम्स के मुताबिक अमेरिका में JROTC प्रोग्राम 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। इसको लेकर पहले भी कई बार विवाद हो चुके हैं। 1970 में वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका में कई प्रदर्शन हुए थे। जिसमें परेशान अमेरिका की जनता ने युद्ध को खत्म करने की मांग की थी। इसी दौरान यह भी आरोप लगे थे कि JROTC प्रोग्राम में दाखिल हाई स्कूल के कई बच्चों को लड़ने के लिए वियतनाम भेजा जा रहा था। जिसके चलते कई जिलों के स्कूलों ने इस प्रोग्राम पर रोक लगाई थी।
1970 से तीगुना हुआ बजट
पैंटागन के अफसर बार-बार कहते हैं कि JROTC सैनिकों की भर्ती का जरिया नहीं है। इसके बावजूद लगभग पैंटागन इसका बजट एक साल के लिए 400 मिलियन डॉलर करना चाहता है। 1970 से लेकर अब तक इस प्रोग्राम के बजट में तीन गुना इजाफा हो चुका है। आर्मी के मुताबिक हाल ही में भर्ती किए गए सैनिकों में से 44 फीसदी JROTC से निकले हुए बच्चे होते हैं। हाई स्कूल के प्राचार्यों का मानना है कि जो बच्चे इस तरह के प्रोग्राम में दाखिला लेते हैं वो दूसरे बच्चों से ज्यादा अनुशासित होते हैं। ऐसे ही कुछ विचार मिलिट्री अफसरों के भी हैं। एक रिसर्च का हवाला देते हुए टाइम्स को सेना के एक अफसर ने कहा कि इस प्रोग्राम में दाखिला लेने वाले छात्रों के ग्रैजुएशन करने की दर दूसरों से ज्यादा है।
अमेरिका के साउथ एटलांटा के हाई स्कूल में लगे JROTC पास करने वाले बच्चों के नाम के टैग।
अमेरिकी सेना में हो रही टारगेट से कम भर्तियां
अमेरिकी सेना में भर्ती होने वाले युवाओं की संख्या लगातार कम हो रही है। वित्त वर्ष 2022 में सेना में 45 हजार युवा भर्ती हुए, जबकि सरकार का लक्ष्य 60 हजार युवाओं को भर्ती करने का था। भर्तियों की संख्या के हिसाब से यह 1973 के बाद सबसे बेकार साल रहा। सेना सचिव क्रिस्टीन वॉर्मुथ ने कहा है कि जवानों की कमी से सेना को अपनी कुछ यूनिट बंद करनी पड़ सकती हैं। साथ ही नेशनल गार्ड और रिजर्व सेना को सामान्य ड्यूटी पर जाना पड़ सकता है।
कम होती भर्तियों के पीछे कोरोना महामारी को बड़ा कारण माना जा रहा है। लॉकडाउन की वजह से युवाओं का अकादमिक प्रदर्शन गिरा है और मानसिक स्वास्थ्य एवं मोटापे जैसी समस्याएं बढ़ी हैं।
इस साल सेना में भर्ती योग्य युवाओं का प्रतिशत 29 से कम होकर 23 फीसदी हो गया। इन योग्य युवाओं में से मात्र 9 फीसदी ही सेना में जाना चाहते हैं। सेना की अनिवार्य कोविड टीकाकरण नीति से भी भर्तियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। दरअसल, अमेरिका में 18 से 24 साल के एक तिहाई युवाओं ने कोरोना वायरस के खिलाफ पूर्ण टीकाकरण नहीं करवाया है।
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