सतवास। सतवास क्षेत्र मे अनूठी मां नर्मदा सेवा परिक्रमा का प्रवेश हुआ। यह यात्रा 8 नवंबर को मप्र के ओंकारेश्वर से शुरू हुई। 3200 किमी की यह परिक्रमा सतवास के ग्राम नामनपुर पहुंची । इस यात्रा में सबसे अलग बात है संत समर्थ गुरु (दादा गुरू) का मां नर्मदा को लेकर अनूठा संदेश दे रहे है इनका न आश्रम है न कोई अलग धार्मिक विचारधारा ये मां नर्मदा के किनारों को ही मठ और इसके आसपास के पेड़ - पर्वतों को मूर्तियां मानते हैं।
सतवास के ग्राम नामनपुर मे पांडाल मे रात्रि मे संत समर्थ गुरू जी द्वारा नर्मदा परिक्रमावासीयो के साथ ही नर्मदा परिक्रमा मार्ग मे निवासरत तथा नर्मदा किनारे स्थित नागरिकों से नर्मदा तटो पर पोलीथीन वस्र नही छोडने का संदेश देते हुए उपस्थित जनो से कहा की प्रत्येक नर्मदा भक्त 3200 किलोमीटर के परिक्रमा मार्ग मे पेड लगाए। संत दादा समर्थ गुरूजी ने कहा की हम प्रकृति के जितने करीब होंगे तो यह हमें अपने आप सहेज लेगी। यह ईश्वर का दिया शरीर है। हम जल, मिट्टी, पर्वत, पहाड़ और वृक्ष को यूं ही नहीं पूजते ये हमारी संस्कृति है, भगवान हैं। एक तरफ हम मां नर्मदा की परिक्रमा करते हैं और दूसरी तरफ उसके किनारों पर प्लास्टिक का तमाम कचरा फेंक रहे हैं। अमरकंटक से लेकर अंकलेश्वर तक नर्मदा के किनारे ऐसा कोई घाट नहीं जहां ऐसी गंदगी न हो। मुझे यह सब खराब लगा और मैं कोई उपदेश भी नहीं देना चाहता। मैं तो खुद करके संदेश देने निकला हूँ मैं जीता जागता उदाहरण हूँ कि मां के जल में कितनी ताकत है। उन्होंने ने कहा की नर्मदा का यह परिक्रमा मार्ग अपने आप नेचुरल आर्ट ऑफ लिविंग है। सतवास कांटाफोड़ लोहारदा क्षेत्र के लोगो के मन मे संत के प्रति एक अपार श्रृद्धा का भाव तथा जिज्ञासा दिखाई पड रह रही थी संत दादा गुरु दो-चार दिन या एक दो माह नहीं पूरे 28 महीने से ज्यादा वे सिर्फ मां नर्मदा का जल पीकर कैसे जीवन निर्वाह कर रहे है।
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