एक जनवरी, 1949 को मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के एक छोटे से गांव लोरहा में जन्मी,श्रीमती बैगा ने अपना अधिकांश जीवन बेहद गरीबी में बिताया और जीवनयापन के लिए, कई वर्ष छोटे-मोटे काम,ईंधन वाली लकड़ी बेचने इत्यादि के लिए कठोर मेहनत की। परंतु, 2008 में उनके जीवन में उस समय एक बड़ा बदलाव आया, जब कला भवन, शांति निकेतन, कोलकाता के पूर्व छात्रआशीष स्वामी उनके गांव लोहरा आए और वहां अपना कला स्टूडियो 'जनगण तसवीरखाना' स्थापित किया। उन्होंने श्रीमती बैगा को वहां हाथ का काम दिया और साथ ही उन्हें ब्रुश और रंगों से चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया। बैगा जनजातिअपने देवताओं के रूप में मुख्य रूप से शिव, नाग और बाघ को पूजती है। श्रीमती बैगा ने चित्र बनाना शुरू कर दिया। उन्होंनेशानदारकल्पनाशक्ति का परिचय दिया। वह भगवान शिव को विशेष तरीके से चित्रित करती हैं। उनके लगभग सभी चित्रों में भगवान शिव प्रतीक रूप में हैं। वह जो ज्यामितीय आकृतियां गढ़ती हैं, वे बालसुलभ, रंग-बिरंगी और सुंदर वेशभूषायुक्त हैं। देवता के रूप में बाघ से जुड़ी लोक कथाओं को चित्रित करते हुए, उन्होंने पर्यावरण और वन्यजीवों की रक्षा का महत्व दर्शाया है।
श्रीमती बैगा ने बैगा जनजाति के पारंपरिक राहत कार्यों, संस्कृति और दर्शन को मान्यंता और पहचान दिलाई है। एक निरक्षर महिला जिसने कभी स्कूल का चेहरा तक नहीं देखा, उसने नई पीढ़ी और कला गुरुओं का ध्यान अपनी कला की ओर आकर्षित किया। बैगा चित्रकारी और संस्कृति के प्रति हजारों देशी और विदेशी आगंतुकों का ध्या न खींचते हुए, उन्होंने गांव को एक कला पर्यटन स्थल में बदल दिया है। वह अधिक से अधिक बैगा महिला कलाकारों को चित्रकारीसिखा रही हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बना रही हैं।
श्रीमती बैगा को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनमें मार्च, 2022 में भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार शामिल है। उन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वाराविंध्य मैकल उत्सव, उमरिया 2016 में बैगा अंतरराष्ट्री य कला के लिए सम्मानित किया गया था। उन्होंने ललित कला अकादमी, नई दिल्ली द्वारा बांधवगढ़, मध्य प्रदेश में आयोजितराष्ट्रीय जनजातीय कला शिविर 2020 में भाग लिया।
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