माता काली के दिव्य रूप का दर्शन पाकर भक्त निर्भय हो जाते है | इस रूप का दर्शन दुर्लभ माना जाता है | काजल के समान काली व रक्तासुर के रक्त का पान करने से लाल जिह्वा बाहर निकाले हुए माता काली का दिव्य स्वरूप भक्तो को अभय प्रदान करता है |
पूरी होती हैं मनोकामना
माता काली के इस स्वरूप का दर्शन करने मात्र से साधकों की सभी मनोकामनाए पूरी हो जाती है | भक्तों को वह सब मिल जाता है जो उनकी कामना होती है | अपनी कामनाओं को लेकर दया बरसाने वाली विन्ध्य पर्वत पर विराजमान माँ काली के दरबार में भक्तो का ताँता लगा रहता है | भाव की भूखी माता को पत्र पुष्प अर्पित कर भक्त भजन में लीन हो माँ की कृपा पाने के लिए लालायित रहते है। नवरात्रि में माता रानी की एक झलक पाने के लिए भक्त लाइन में लग कर दर्शन पूजन कर रहे है।
मार्कंडेय पुराण में वर्णन
विन्ध्य पर्वत पर विराजमान माता काली के दिव्य स्वरूप का दर्शन कर भक्त मन्त्र मुग्ध हो उठते है | माता के मनोहारी छवि को भक्त निहारते ही रहते है । मार्कंडेय पुराण में वर्णन है कि रक्तासुर समेत तमाम दैत्यों का वध करने वाली सभी देवो के अंश से उत्पन्न महाकाली ने देवासुर संग्राम के रण में घोर संघर्ष किया। अत्यंत क्रोध से देवी का सम्पूर्ण शरीर काला हो गया था | सभी देव देवी के इस स्वरूप को देख रहे थे । भगवान शिव ने माता पार्वती से देवी के इस रूप का वर्णन करे हुए काली कह दिया । इस पर देवी अत्यंत कुद्ध हो उठी और कहा मै सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का भक्षण कर जाउंगी | यह सुनते ही देवो में खलबली मच गयी । सभी देवता "त्राहि माम - त्राहि माम" की गुहार लगाते महादेव के पास पहुंचे । देवो के देव महादेव ने उनकी बात सुनी और देवी को मनाने निकल पड़े | महादेव उस स्थान पर पहुचें जहा माँ काली अपने खड्ग से संहार करने में लगी थी । भगवान शिव भगवती काली के रास्ते में लेट गये | शिव के शरीर पर पैर पड़ते ही माता काली का सारा गुस्सा शांत हो गया और वह दयामयी के रूप में आ गयी |
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