भोपाल। चुनावी साल में कांग्रेस को तीसरे दल एक के बाद एक झटके दे रहे हैं। पहले आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम और सपा ने मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया और अब बहुजन समाज पार्टी ने भी मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया। बसपा ने सभी 230 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की बात कही, जिससे कांग्रेस की टेंशन में इजाफा हो गया। यह चारों दल कांग्रेस के ही वोट बैंक में सेंध लगाते हैं, जिससे कांग्रेस को नए सिरे से रणनीति बनाना होगी। जयस भी कांग्रेस को आंखे दिखा रही है और इस बार सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है।
मध्यप्रदेश में चुनाव समीप आते ही कई राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के लिए दशहरा मैदान में शंखनाद किया है। एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम बहुल इलाकों में सक्रिय हैं। समाजवादी पार्टी भी मध्यप्रदेश में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है और अब बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा ने चुनावी शंखनाद कर दिया है। बसपा ने सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। ग्वालियर, रीवा, उज्जैन, सीहोर जैसे शहरों में बसपा ने बड़े आयोजन भी किए हैं। बसपा सहित इन सभी छोटे-छोटे राजनीतिक दलों की सक्रियता कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। पिछले चार चुनाव का अनुभव बताता है कि इन दलों के वोटों में बढ़ोतरी होने से सीधा नुकसान कांग्रेस को होता है। बहुजन समाज पार्टी को जब भी 5% से अधिक वोट मिला कांग्रेस को नुकसान हुआ… 2003, 2008 और 2013 में कांग्रेस की हार में बसपा का योगदान भी था। 2018 में बसपा को मात्र 1.3% वोट मिले तो कांग्रेस जीत गई। इस बार बसपा के साथ-साथ आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम जैसे नए उभरते दल भी ताल ठोक रहे हैं। बसपा सहित छोटे दलों की सक्रियता से भाजपा उतनी चिंतित नहीं है लेकिन कांग्रेस के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है। पिछली बार कांग्रेस और भाजपा की जीत का अंतर मात्रा आधा प्रतिशत था। जबकि बहुजन समाज पार्टी को 1.3% वोट मिले थे। इस बार 4 – 5% वोट सियासी गणित बिगाड़ सकते हैं। इसलिए कांग्रेस बाहर से भले ही निश्चिंत दिखे लेकिन भीतर ही भीतर कहीं ना कहीं उसे भी इन दलों की चिंता है।
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