व्हिप को पार्टी से अलग करना सही नहीं-कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि व्हिप को पार्टी से अलग करना लोकतंत्र के हिसाब से सही नहीं होगा। पार्टी ही जनता से वोट मांगती है। सिर्फ विधायक तय नहीं कर सकते कि व्हिप कौन होगा। उद्धव ठाकरे को पार्टी विधायकों की बैठक में नेता माना गया था। 3 जुलाई को स्पीकर ने शिवसेना के नए व्हिप को मान्यता दे दी। इस तरह दो नेता और 2 व्हिप हो गए। स्पीकर को स्वतंत्र जांच कर फैसला लेना चाहिए था। गोगावले को व्हिप मान लेना गलत था क्योंकि इसकी नियुक्ति पार्टी करती है। इसके साथ ही पूरा मामला बड़ी बैंच के पास भेज दिया गया।
राज्यपाल को लेकर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट
राज्यपाल को वो नहीं करना चाहिए जो ताकत संविधान ने उनको नहीं दी है। अगर सरकार और स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा टालने की कोशिश करें तो राज्यपाल फैसला ले सकते हैं, लेकिन इस मामले में विधायकों ने राज्यपाल को जो चिट्ठी लिखी, उसमें यह नहीं कहा कि वह MVA सरकार हटाना चाहते हैं। सिर्फ अपनी पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि किसी पार्टी में असंतोष फ्लोर टेस्ट का आधार नहीं होना चाहिए। राज्यपाल को जो भी प्रस्ताव मिले थे, वह स्पष्ट नहीं थे। यह पता नहीं था कि असंतुष्ट विधायक नई पार्टी बना रहे हैं या कहीं विलय कर रहे हैं।
‘अयोग्यता पर नहीं लेंगे फैसला’
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह अयोग्यता पर फैसला नहीं लेगा। स्पीकर को इस मामले में जल्द फैसला लेने के आदेश दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि पार्टी में बंटवारा अयोग्यता कार्रवाई से बचने का आधार नहीं हो सकती। उद्धव को दोबारा बहाल नहीं कर सकते।
दरअसल, बीते साल एकनाथ शिंदे गुट की बगावत के बाद शिवसेना दो गुटों में बंट गई थी। उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को सरकार बनाने के लिए बुलाया था। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. उद्धव ठा ने गुट की ओर से 16 विधायकों की सदस्यता की वैधता को चुनौती दी गई थी, जिस पर आज फैसला आया है.
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