16 विधायकों के निलंबन को लेकर फैसला
पिछले साल जून 2022 में एकनाथ शिंदे और उनके गुट के विधायकों ने शिवसेना से बगावत कर ली थी। जिसके बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार गिर गई थी। बागी विधायकों के खिलाफ उद्धव ठाकरे गुट ने विधानसभा उपाध्यक्ष के पास से विधायक को अयोग्य करार देने की याचिका दायर की थी। हालांकि एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में उपाध्यक्ष के फैसले के खिलाफ याचिका दायर कर रोक लगाने की मांग की। एकनाथ शिंदे गुट का कहना है कि उपाध्यक्ष पर पहले ही कुछ विधायकों ने अविश्वास प्रस्ताव लाया है, ऐसे में वे विधायकों के निलंबन पर फैसला नहीं ले सकते। सुप्रीम कोर्ट में करीब 9 महीने तक चली लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
ठाकरे गुट ने रखी हैं ये दलीलें
ठाकरे गुट के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 10 का हवाला देते हुए दलील रखी, अगर कोई विधायकों का समूह दो तिहाई से ज्यादा लोग बगावत करते हैं, तो उन्हें किसी ना किसी दल में विलीन होना होगा, लेकिन शिंदे और उनके गुट ने ऐसा नहीं किया। इसलिए उन्हें अयोग्य घोषित किया जाये। वहीं विधानसभा उपाध्यक्ष पर आए अविश्वास पर भी उठे सवाल को ठाकरे गुट ने गलत बताया।
शिंदे गुट ने रखी हैं ये दलीलें
उधऱ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिंदे गुट के वकीलों ने कहा कि उनके विधायकों ने पार्टी में कोई बगावत नहीं की वे आज भी शिवसेना में हैं और पहले भी शिवसेना में ही थे। लिहाजा जिस संविधान के दसवें शेड्यूल का हवाला देखकर निष्कासित करने की मांग की जा रही है, वो तथ्यहीन है। एकनाथ शिंदे शिवसेना पार्टी के विधानसभा में ग्रुप लीडर है। बहुमत उनके पास है ऐसे में विधायकों का कोरम पूरा किए बगैर ही उन्हें गैरकानूनी तरीके से हटाने की कोशिश उद्धव ठाकरे ने की।
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