भोपाल। फिल्म रामायण में हनुमान का किरदार निभाने वाले कलाकार विक्रम मस्ताल जो कि मध्य प्रदेश के ही हैं। वह आदि पुरुष फिल्म में जिस तरह से श्री राम, सीता और हनुमान जी का चरित्र चित्रण दिखाया गया है उससे बेहद आहत हैं।
राजधानी भोपाल में पत्रकार वार्ता आयोजित कर कलाकार विक्रम ने बताया कि खुद की ब्रांडिंग करने के लिए मनोज शुक्ला से ने जिस तरह से आदि पुरुष फिल्में संवाद लिखे हैं, वह बेहद आपत्तिजनक हैं। सनातन धर्म में हम रामायण के सभी पात्रों की पूजा करते हैं। लेकिन इस फिल्म में रामायण का ही मजाक उड़ाया गया है। मैं मांग करता हूं की सनातन धर्म का मजाक उड़ाने वाले ऐसे संवादों को आदि पुरुष फिल्म से हटाया जाए। इसके साथ ही निर्माता निर्देशकों को भी सोचना चाहिए कि हिंदू धर्म का मजाक बनाना गलत है। विक्रम ने कहा कि हनुमान जी हम सब के लिए आराध्य हैं लेकिन फिल्म में उनके संवाद हल्के है। फिल्म आदि पुरुष के निर्देशक और कलाकारों को चेतावनी देते हुए विक्रम ने कहा कि जल्द ही अपनी गलतियों को सुधारे नहीं तो मैं जनहित याचिका लगाकर न्यायालय से इस फिल्म पर रोक लगाने की मांग करूंगा।
नर्मदा परिक्रमा पर बना रहा हूं फिल्म
विक्रम ने कहा-फिल्म के माध्यम से सनातन धर्म को गलत तरीके से दिखाया गया है। जिन सरकारों को लगता है संवाद गलत है, वो जो कार्रवाई करेंगे तो मैं उनके साथ हूं। मां नर्मदा की परिक्रमा को लेकर मैं फिल्म बना रहा हूं। फिल्म में नर्मदा में हो रहे अवैध खनन का मुद्दा भी उठाऊंगा।
विरोध के बाद मनोज ने दी सफाई
गीतकार मनोज मुंतशिर ने ट्वीट कर लिखा- रामकथा से पहला पाठ जो कोई सीख सकता है, वो है हर भावना का सम्मान करना। सही या गलत, समय के अनुसार बदल जाता है, भावना रह जाती है। आदिपुरुष में 4000 से भी ज्यादा पंक्तियों के संवाद मैंने लिखे, 5 पंक्तियों पर कुछ भावनाएं आहत हुईं। उन सैकड़ों पंक्तियों में जहां श्रीराम का यशगान किया, मां सीता के सतीत्व का वर्णन किया, उनके लिए प्रशंसा भी मिलनी थी, जो पता नहीं क्यों मिली नहीं?
मेरे ही भाइयों ने मेरे लिए सोशल मीडिया पर अशोभनीय शब्द लिखे। वहीं मेरे अपने, जिनकी पूज्य माताओं के लिए मैंने टीवी पर अनेकों बार कविताएं पढ़ीं, उन्होंने मेरी ही मां को अभद्र शब्दों से संबोधित किया। मैं सोचता रहा, मतभेद तो हो सकता है, लेकिन मेरे भाइयों में अचानक इतनी कड़वाहट कहां से आ गई कि वो श्रीराम का दर्शन भूल गए। हर मां को अपनी मां मानते थे। शबरी के चरणों में ऐसे बैठे, जैसे कौशल्या के चरणों में बैठे हों।
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