जहां बातचीत में ज्योति मौर्या के मामले में कुछ भी बोलने से मना कर दिया फिर भी बातचीत के दौरान उसने बताया कि आलोक कह रहा कि उसने ज्योति को पढ़ाया है और लोग भी यही कह रहे है जबकि पढ़ाने लिखाने का मतलब होता है बचपन से पढ़ाया लिखाया क्या सच मे हम जहां बैठे कोई हमें बना सकता है?
जो दावा कर रहा है पढ़ाने लिखाने का वो ये नही बता सकता कि कितने पेपर होते है कितने पेपर कितने ऑप्शन होते है....वो नही बता पायेगा। क्यों इस चीज को इतना बढ़ाया चढ़ाया जा है मैं भी हैरत में हूँ। पर्सनल मामला था इस चीज को वहीं का वहीं खत्म होना चाहिए था। जब उनसे पूछा कि ज्योति मौर्या से कहाँ मुलाकात हुई बातचीत कैसे आगे बढ़ी तो उसने पर्सनल सवाल कहकर बात को टाल दिया।
उन्होंने कहा कि जो बातें हो रही है वो लाई गई है। न मैं लेकर आया हूँ और न ही वो लड़की (ज्योति मौर्य) लेकर आई है, कोई तीसरा आदमी लेकर आया है। इस परेशानी मैं हम अपना प्रोफेशनल काम भी ठीक से नही कर पा रहे है। अब इस मामले में हमारे बोलने से समस्या सुलझेगी नही और उलझ जाएगी। हम नियमों से बंधे है। यदि मैं या ज्योति मौर्य आम व्यक्ति होते अध्यापक होते तो बोल देते। हमारा इस कुर्सी में बैठना गुन्हा हो गया है। मैं सॉफ्वेयर इंजीनियर था अच्छी खासी नॉकरी कर रहा था मगर अब पता नही कहाँ आ कर मैं फंस गया। यदि पहले ही इस मामले में पहले कुछ मीडिया ने नही पूछा अब पूछ रही है। मैं एक जिम्मेदार पद में हूँ इसलिए कैमरे के सामने कुछ भी नही बोल सकता।
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