सागर । ऑगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति के ऐवज में रिष्वत लेने वाली अभियुक्त सेवा-निवृत्त परियोजना श्रीमती निषा रतले को विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर म.प्र श्री आलोक मिश्रा की अदालत ने दोषी करार देते हुये भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की घारा-7 के अंतर्गत 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं बीस हजार रूपये अर्थदण्ड की सजा से दंडित किया है।मामले की पैरवी श्री श्याम नेमा सहा. जिला लोक अभियोजन अधिकारी ने की।
घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि दिनांक 16.03.2020 को आवेदक वीरेन्द्र सिंह ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त कार्यालय सागर को सम्बोधित करते हुये एक लिखित शिकायत आवेदन इस आशय का दिया कि उसकी पत्नी श्रीमती रितु ठाकुर की नियुक्ति आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर हुई है, नियुक्ति के लिए अभियुक्त श्रीमती निशा रतले, प्रभारी परियोजना अधिकारी महिला एवं बाल विकास, बीना जिला सागर, द्वारा 20,000/-रु. (बीस हजार रु.) रिश्वत राशि की मांग की जा रही है। रिश्वत न देने पर अभियुक्त द्वारा परेशान किया जाता है और कहा जाता है कि रिश्वत नहीं दी तो जांच करके पद से हटा देगी। उसकी पत्नी अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहती, बल्कि रंगे हाथों पकड़वाना चाहती है। श्रीमती रितु ठाकुर द्वारा अभियुक्त के विरूद्ध अग्रिम कार्यवाही किये जाने का निवेदन किया गया। उक्त आवेदन पर कार्यवाही हेतु तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, वि.पु.स्था. सागर ने निरीक्षक मंजू सिंह को अधिकृत किया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकॉर्डर दिया गया इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकॉर्ड करने हेतु निर्देशित किया तत्पश्चात् आवेदक द्वारा मॉगवार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्यवाहियॉ की गई एवं टेªप कार्यवाही आयोजित की गई । नियत दिनॉक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राषि दी गई व आवेदक का इषारा मिलने पर टेªपदल के सदस्य मौके पर पहुॅचे और टेªपदल का परिचय देकर अभियुक्त का परिचय प्राप्त करने के उपरांत, आवेदक से रिश्वत राशि के बारे में पूछे जाने पर आवेदक ने बताया कि अभियुक्त के कहने पर उसने रिश्वत राशि पास रखी हुई टेबिल के उपर रखी हुई फाईल के नीचे रख दी है। तत्पश्चात् अग्रिम कार्यवाही प्रारम्भ की गई। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किये गये, घटना स्थल का नक्षा मौका तैयार किया गया अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 एवं धारा-13(1)(डी) सपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपी के विरूद्ध दर्ज करते हुये विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेष किया।विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा अभियोजन साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया । जहॉ विचारण उपरांत न्यायालय-विषेष न्यायाधीष भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर श्री आलोक मिश्रा की न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुये उपरोक्त सजा से दंडित किया है।
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